लखीमपुर खीरी हिंसा: आरोपी आशीष मिश्रा ने सीजेएम कोर्ट में किया सरेंडर
लखीमपुर (करण वाणी, न्यूज)। यूपी के गृह राज्यमंत्री अजय aमिश्रा टेनी के बेटे और लखीमपुर हिंसा के मुख्य आरोपी आशीष मिश्रा ने रविवार को लखीमपुर की एक स्थानीय अदालत में सरेंडर किया. आशीष मिश्रा ने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चिंताराम की अदालत में सरेंडर किया और उन्हें जेल भेज दिया गया।
आशीष के वकील अवधेश सिंह ने से कहा, ‘आशीष ने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया है। हमें एक सप्ताह का समय दिया गया है, लेकिन सोमवार को आखिरी दिन होने के कारण उसने एक दिन पहले आत्मसमर्पण कर दिया, जेल अधीक्षक पीपी सिंह ने कहा कि आशीष को सुरक्षा कारणों से अलग बैरक में रखा जाएगा।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दी गई जमानत 18 अप्रैल को को रद्द कर दी थी और उन्हें एक सप्ताह के भीतर सरेंडर करने को कहा था।
अदालत ने कहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पीड़ितों को निष्पक्ष एवं प्रभावी तरीके से नहीं सुना गया, क्योंकि उसने (उच्च न्यायालय ने) साक्ष्यों को लेकर संकुचित दृष्टिकोण अपनाया।उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि उच्च न्यायालय ने अप्रासंगिक विवेचनाओं को ध्यान में रखा और प्राथमिकी की सामग्री को अतिरिक्त महत्व दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने प्रासंगिक तथ्यों और इस तथ्य पर ध्यान देने के बाद कि पीड़ितों को सुनवाई का पूरा अवसर नहीं दिया गया था, गुण-दोष के आधार पर नए सिरे से सुनवाई के लिए जमानत अर्जी को वापस भेज दिया।
पिछले साल तीन अक्तूबर को लखीमपुर खीरी में हिंसा के दौरान आठ लोग मारे गए थे। यह हिंसा तब हुई थी जब कृषि कानूनों के खिलाफ आक्रोशित किसान उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के केंद्रीय मंत्री के गांव में आयोजित एक कार्यक्रम में जाने का विरोध कर रहे थे।
मृतकों में चार किसान और एक पत्रकार शामिल हैं, जिन्हें कथित तौर पर भाजपा कार्यकतार्ओं को ले जा रही कारों ने कुचल दिया था. घटना के बाद गुस्साए किसानों ने वाहन चालक और दो भाजपा कार्यकतार्ओं को कथित तौर पर पीट-पीट कर मार डाला था।
अहम बिंदु
पुलिस ने बाद में इस मामले में आशीष को गिरफ्तार कर लिया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने आशीष को नियमित जमानत दे दी थी और कहा था कि यह मामला वाहन से टक्कर मारने की दुर्घटना का है।
मगर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत रद्द करते हुए कहा कि पीड़ितों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में निष्पक्ष और प्रभावी सुनवाई से वंचित कर दिया गया, जिसने सबूतों को लेकर अदूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाया।