कृष्ण-सुदामा का प्रसंग सुनकर भाव विभोर हुए श्रोता
सरोजनीनगर के पहाड़पुर गाँव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के सातवें दिन कृष्ण सुदामा के प्रसंग का सुंदर वर्णन हुआ। कथाव्यास आचार्य विष्णुशरण भारद्वाज जी ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो।

लखनऊ। सरोजनीनगर के पहाड़पुर गाँव में राहुल पांडे द्वारा आयोजित श्रीमदभागवत कथा में सरस संगीतमय भागवत कथा का रसपान कराते हुए आचार्य विष्णुशरण भारद्वाज जी ने विभिन्न सूर्यवंशी राजाओं की कथा, कंस वध, उद्धव प्रसंग, जरासंध वध, कालयवन उद्धार, द्वारिका पूरी की महिमा, बलराम जी का विवाह और श्रीकृष्ण रुखमणी विवाह के बाद सुदामा चरित्र का वर्णन किया। कथाव्यास आचार्य विष्णुशरण भारद्वाज जी के द्वारा श्रीकृष्ण रुखमणी विवाह व सुदामा चरित्र का वर्णन किए जाने पर पंडाल में उपस्थित श्रोता भाव-विभोर हो गए।
कथाव्यास आचार्य विष्णुशरण भारद्वाज जी ने सुदामा चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मित्रता करो, तो भगवान श्रीकृष्ण और सुदामा जैसी करो। सच्चा मित्र वही है, जो अपने मित्र के दुःख को बिना कहे समझ जाए। दुःख, कष्ट के समय हमेशा सहयोग के लिए खड़ा रहे। अपने मित्र की परेशानी को समझे और बिना बताए ही मदद कर दे, परंतु आजकल स्वार्थ की मित्रता रह गई है। जब तक स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है, तब तक मित्रता रहती है। जब स्वार्थ पूरा हो जाता है, मित्रता खत्म हो जाती है।
भागवत सुदामा संसार में सबसे अनोखे भक्त रहे हैं। वह जीवन में जितने गरीब नजर आए, उतने वे मन से धनवान थे। उन्होंने अपने सुख व दुखों को भगवान की इच्छा पर सौंप दिया था। श्रीकृष्ण और सुदामा के मिलन का प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भावविभोर हो गए। उन्होंने कहा कि जब सुदामा भगवान श्रीकृष्ण ने मिलने आए तो उन्होंने सुदामा के फटे कपड़े नहीं देखे, बल्कि मित्र की भावनाओं को देखा। मनुष्य को अपना कर्म नहीं भूलना चाहिए। अगर सच्चा मित्र है तो श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह होना चाहिए। जीवन में मनुष्य को श्रीकृष्ण की तरह अपनी मित्रता निभानी चाहिए।