लखनऊ

श्रीराम के हाथों मृत्युमोक्ष चाहता था…..

कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य लखनऊ

एक चींटा चल पड़े तो धीरे धीरे

हज़ारों मील चलता रह सकता है,

पक्षिराज गरुड़ जगह से हिले तो

एक पग भी आगे नहीं बढ़ सकता है।

 

रावण में चींटे जैसी लगन भरी थी,

इसलिये सब तरह की योग्यता थी,

पक्षिराज जैसा बहुत ही ज़िद्दी था,

इसलिये अहंकार से पूर्ण ग्रस्त था।

 

विभीषण ने अपने भाई रावण को

समय, साथ समर्पण तीनों दिया,

पर रावण भाई को संभाल सका,

जिसने सारा भेद श्रीराम को दे दिया।

 

रावण से लड़ने लंका में वानरसेना

को लेकर श्रीराम लक्ष्मण गए थे,

मानव सेना को लेकर वह जाते तो

उनमें से आधे रावण से मिल जाते।

 

रावण की सोने की लंका का लालच

इंसानों को रावण के पक्ष में ले लेता,

दल बदल शायद तभी शुरू हो जाता,

यह तब नहीं तो आज है देखा जाता।

 

रावण यद्यपि प्रकाण्ड पण्डित था,

परम शिवभक्त, महाज्ञानी भी था,

परम शक्तिशाली, ब्राह्मण भी था,

पर अपवाद स्वरूप अहंकारी था।

 

रावण श्रापग्रसित है, वह जानता था,

आदित्य इसलिए सीताहरण किया था,

श्रीराम के हाथों मृत्युमोक्ष चाहता था,

श्रीराम को विजय आशीष दिया था।

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