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मत सिखाओ जिंदगी जीने का सलीका तुम किसी को…

डॉ. विदुषी सिंह,

एमबीबीएस एमडी
केजीएमयू लखनऊ।

 

मत सिखाओ जिंदगी जीने का सलीका तुम किसी को,

तुम खुद में इतने भी तजुरबेदार नही हो

अगर जो गुरुर तुमको हो चला है, उमर का अपनी, तो याद रखो कि ऊपर वाले की दी गई जिंदगी का तुम मौलवी किरदार नही हो…..

चलो माना तुमने कुछ बरस, कुछ धूप, कुछ आंधियाँ किसी से ज्यादा देखी होंगी,

पर उसकी कश्ती को तुम तूफान से निकाल लाओ, इतने भी तुम होशियार नही हो

मत सिखाओ जिंदगी जीने का सलीका किसी को,

तुम खुद में इतने भी तजुरबेदार नही हो

सबकी राहें, राहगीर, और मंजिलें अलग हैं।

तुम सब कुछ समझ जाओ, इतने भी समझदार नही हो

मत सिखाओ जिंदगी जीने का सलीका तुम इतने भी तजुरबेदार नही हो…..

जो अपने सलाह की नुमाइश करने आते हो तुम,

बिन मसला समझे सहूलियत का रास्ता बुझाते हो तुम,

जो तुम्हारी सलाह मानकर तबाह हो जाए जिंदगी उसकी,

तुम सब पहले सा कर पाओ, उसका खोया उसको वापस लौटा पाओ, इतने भी काबिल इंसान नही हो तुम

मत सिखाओ जिंदगी जीने का सलीका तुम किसी को,

तुम खुद में इतने भी तजुरबेदार नही हो….

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