बदन है मिट्टी का, साँसे भी उधार
कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य लखनऊ।
आजकल मेरे से वे ख़फ़ा ख़फ़ा हैं,
उनकी हर बात दिल से ले लेता हूँ,
जो भी कहें, कैसे स्वीकार कर लूँ,
अपनी ख्वाहिशें क्यों दफ़न कर दूँ।
बदन है मिट्टी का, सांसें भी उधार हैं,
घमंड करें भी तो जाने किस बात का,
जबकि हम सभी यहाँ किराएदार हैं,
सुमधुर बोलें, त्याग करें अभिमान का।
एक धन विहीन ग़रीब व्यक्ति के मित्र,
पुत्र, पत्नी, बन्धु सभी उसे त्याग देते हैं,
परन्तु जब वह धनवान हो जाता है,
सब पुनः उसके आश्रय में आ जाते हैं।
कहावत है कि दादा बड़ा न भैया,
इस दुनिया में सबसे बड़ा रुपैया,
सच है जो धनवान व्यक्ति होता है,
सारा समाज उसका बन्धु होता है।
बात सबकी सुननी चाहिये क्योंकि
कुछ न कुछ शिक्षा अवश्य मिलेगी,
कोई भी सर्व ज्ञानी नहीं हो सकता है,
पर सबको कुछ ज्ञान अवश्य होता है।
जिसे कुछ भी ज्ञान होता है वो कुछ न
कुछ अच्छी सीख अवश्य दे सकता है,
उल्टा नाम जप वाल्मीकि महर्षि बने,
रामायण लिख कर आदिकवि बने।
जिस तरह से चंदन के भंडार में जाने
से उसकी महक हर हाल में मिलती है,
आदित्य गुनीं ज़नो के बीच जाने से
कुछ न कुछ सीख अवश्य मिलती है।