सेहत

जल संरक्षित न करते हम सब…..

प्रभाकर सिंह रनवीर

वन एवं जल संरक्षण

जल संरक्षित करते हम सब,

तालाबों को भरते हम सब॥

जल तो बर्बाद करते दिन भर,

चिंता कभी करते हम सब,

जल के अभाव में पलते हम सब,

खुद का जीना खुद ही दुर्भर करते हमसब॥

 

नित नित पेड़ काटते हमसब,

जंगलों को बांटते हम सब॥

और कोई पेड़ लगाते हम सब,

ताजी हवा को तरसते हम सब॥

बादल भी नही बरसते हमपर

खुद का जीना खुद ही दुर्भर करते हम सब

 

ऐसा वक्त भी आयेगा इक दिन

कोई पानी पी पाएगा इक दिन॥

फिर बिन पानी बिन पेड़ो के आखिर,

जीवन कैसे संभव होगा सोचो॥

यारो नाही मीलों कोई हवा चलेगी,

और ना ही छांव दिखेगीं कोसो॥

 

मानवता तो मानो खो चुका हो जैसे,

और मानव बन गया हो जैसे कोई दानव।

काट रहा है नित वृक्ष हरे भरे सब,

कर रहा हो प्रकृति का सर्वनाश,

मच रहा विकट कृंदन ये कैसा,

वशुधा खो रही अपनी संपदा॥

 

सोच रहे मन ही मन ये पेड़ सभी और,

कर रहे हृदय में बस यही विचार

क्या परिणाम मिला परमार्थ का आखिर,

क्यू वन से मुझको दिया निकाल॥

इक क्षणिक स्वार्थ खा गया हमें

अब,

जिससे वन को सारे दिया उजाड॥

 

पेड़ बिना ना जीवन संभव होगा,

और ना ही सांस चलेगी सोचो॥

घुट घुट कर मर जाओगे और,

फिर कैसे लाश जलेगी सोचो॥

पानी बिन कोई अन्न उगेगा,

फिर आखिर कैसे बात बनेगी सोचो॥

 

पेड़ लगाओ और वर्षा पाओ,

बादल की कर दो भरमार॥

बादल बनने और बरसने से,

फिर होगा यारो सबका उद्धार॥

खेती होगी और हल चलेंगे,

पानी बरसेगा प्यास बुझेगी॥

ताजी हवा का होगा संचार॥

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