140 करोड़ व्यक्ति और एक कानून…
- डॉ रजनीश सिंह
- चिकित्सक, मीडिया प्रभारी भाजपा
- अयोध्या
समान नागरिक संहिता सही मायनों में ऐसा कानून होगा जो भारत के अंदर सामाजिक समरसता का भाव पैदा करेगा। भारत के लिएभारत के अंदर जो बराबरी का सपना बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर, हमारे पित्र पुरुष श्रद्धेय दीनदयाल उपाध्याय जी व श्यामा प्रसादमुखर्जी ने देखा था उसको धरातल पर उतारने का काम उनके अनुयायियों द्वारा किया जाना बड़े उल्लास एवं हम सबके लिए गर्व की बातहै। यह हमें गौरव की अनुभूति भी कराता है ।
भारत एक देश ही नहीं बल्कि एक ऐसी परंपरा का संवाहक है जहां पर अतिथि देवो भवः एवं वसुधैव कुटुंबकम हमारे आदर्श वाक्य है, आजादी के बाद से हमारे देश में शरण लेने वाले शरणार्थी से लेकर नागरिक तक वो किसी भी धर्म या जाति के रहे हो उनकी संख्या मेंआज तक गिरावट नहीं आई है बल्कि बढ़ोतरी हुई है। आज हम दुनिया के किसी देश पर जब कोई संकट आता है तो मदद का हाथसबसे पहले आगे करने वालों में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। मदद करने से पहले हम उस देश की संस्कृति सभ्यता नहीं पूछते हैं।
कोरोना महामारी के समय भारतीयों के द्वारा अन्य देशों की मदद का लोहा आज पूरी दुनिया मान रही है ,यह हमारे वसुधैव कुटुंबकमका जीता जागता उदाहरण है। यह सब मैं इसलिए कह रहा हूं कि भारत के अंदर रहकर भारत का खाकर देश के उन तमाम लोगों कोसमय–समय पर उकसाने का प्रयास करने वाले कथित समाजसेवी संगठन का चोला ओढ़े कथित समाजसेवियों के द्वारा पहले कश्मीरकी धारा 370 के नाम पर नागरिकता कानून के नाम पर विदेशी फंडिंग के जरिए लगातार उकसाने का प्रयास किया जाता रहा है लेकिनउनके मंसूबे आज तक फेल ही रहे।
समान नागरिक संहिता सही मायनों में भारतीयों को एक सूत्र में पिरोने वाला कानून होगा जिसमें ना राज्यों की कोई सीमा होगी और नाधर्म का कोई बंधन सारे नागरिक भारतीय होंगे। किसी भी नागरिक को किसी भी नागरिक के प्रति हीन भावना या यह कहें कि किसी कोदेखकर उसके सुविधा के नाम पर अपने अंदर हीनता नहीं महसूस होगी सही मायनों में ऐसे कानूनों की आवश्यकता देश को आजादी केतुरंत बाद भी थी लेकिन अफसोस इस बात का है कि पूर्ववर्ती सरकारों को ऐसे कार्यों के संपादित करने के लिए जिस इच्छाशक्ति कोदिखाएं की आवश्यकता थी वह उन पूर्ववर्ती सरकारों में नहीं थी और जो प्रधानमंत्री इसके प्रति संकल्पित थे उनके पास अपना खुद काबहुमत नहीं था। उनके सहयोगी दल ऐसे कानूनों के पक्ष में नहीं थे शायद यही वजह रही होगी कि वह प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल कभीपूरा नहीं कर पाए लेकिन कुछ प्रधानमंत्री ऐसे भी थे जिन्होंने तुष्टीकरण की चाशनी में डूब कर यहां तक कह डाला कि देश के संसाधनोंपर पहला हक मुसलमानों का है। एक चुने हुए प्रधानमंत्री को ऐसे बयानों से बचना चाहिए था। यह तो भारत की एकता पर एक चुने हुएप्रधानमंत्री का आजाद भारत में सबसे बड़ा हमला था लेकिन भारत की संस्कृति भारतीय एकता की नीव इतनी मजबूत है की इस एकताकी नींव को हिला पाना सबके बस की बात नहीं है ऐसा बयान आने के बाद भारत की एक बड़ी आबादी ने अपनी सहिष्णुता का परिचयदेते हुए ऐसे बयानों का जवाब बुलेट से ना देकर बैलट से देने का काम किया यह खूबसूरती दुनिया के किसी देश में नही हैं, सिर्फ लोकतांत्रिक देश भारत में ही हैं ।
आजादी के बाद से देश में तमाम उठापटक देखे हैं। कई युद्ध लड़े जा चुके हैं। छद्म युद्ध तो आजादी केबाद से ही अनवरत चल ही रहे हैं इन्हीं सब चीजों को देखते हुए ऐसे कानूनों की जरूरत है जो सभी देशवासियों को एक सूत्र में पिरोएरखें और अंत में उन राजनीतिक दलों की विचारधारा को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि होगी जो बिना इस कानून का ड्राफ्ट देखे ही पहले से हीमन बना कर बैठे हैं कि हमको इस कानून का विरोध करना है। भारत की जनता बहुत समझदार है उसे पता है कि कौन सा कानून हमारेहित में है और कौन सा अहित में है इसलिए किसी राजनीतिक दल को इस कानून के विरोध में झंडा लेकर चलने वाले पांच भारतीय भीनहीं मिलेंगे ।अगर यह कानून आता है तो सच में बहुत सौभाग्य की बात होगी और देश एकता के सूत्र में बंध जाएगा और इसका असरआने वाले आम चुनाव में जनता अपने बैलेट से अपना जनमत स्पष्ट कर देगी।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति karnvaninews उत्तरदायी नहीं है।)