संपादकीय

महाकुंभनगर: जब जिम्मेदार हुए स्वार्थी, तो हादसे के शिकार हुए स्नानार्थी

संगम का सच : एक नसीहत

अमरेन्द्र प्रताप सिंह/वरिष्ठ पत्रकार

महाकुंभनगर/प्रयागराज। दिनांक 29 जनवरी 2025, मौनी अमावस्या को प्रातःकाल हुई घटना जिसमे कुछ श्रद्धालुओं तथा उनके परिजनों को इसका शिकार होना पड़ा, बेहद दुखद है। मां गंगा मैया और देवाधिदेव महादेव से विनती है कि वे सभी महाकुंभ आने वालों पर अपनी कृपा बनाएं और उनकी रक्षा करें।

अब बात करते हैं कि, उत्तर प्रदेश के आदरणीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पावन सोच, सबको सुविधा और सुरक्षा देने की उनकी मंशा, साथ ही उनके कुछ अच्छे प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों की मेहनत के बावजूद ऐसी दुखद घटना आखिर क्यों घटी, और इसके जिम्मेदार कौन हैं। कौन हैं वो जिनकी वजह से सरकार के सारे अच्छे मंसूबों पर पानी फिर गया ?

इस सवाल पर विश्लेषण देने से पहले बता दूं, कि मैं पिछली 07 जनवरी से लगातार महाकुंभनगर में हूं। तब पहले अमृत स्नान की तैयारी चल रही थी। इसके बाद 10 जनवरी से मैं संगम की रेती पर लेटे हनुमान जी के मंदिर के सम्मुख लगे टेंट में रहकर, निरंतर पूरे महाकुंभ क्षेत्र की रिपोर्टिंग कर रहा हूं। इसी आधार पर यह रिपोर्ट आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं।

– जहां एक ओर निश्चित रूप से कुछ अधिकारीगण इस महाआयोजन को सफल बनाने में रात दिन एक किए हैं, वहीं उन्हीं के बीच के कुछ लोग अपने नितांत निजी स्वार्थ के कार्यों में ध्यान देकर सारे व्यवस्था को अव्यवस्था में बदलने के लिए भी कम मेहनत नहीं कर रहे, मौनी अमावस्या को घटी घटना शायद उन्हीं की गलतियों का प्रतिफल है।

1 – मेला क्षेत्र में लगे यूपी पुलिस के अधिकारियों से लेकर कांस्टेबल और होमगार्ड तक ने अपने परिवार, रिश्तेदार, पड़ोसी, संगी साथी और जानने वालों को संगम में स्नान कराने और मेले में पुलिस वाहनों पर बिठाकर घुमाने का जैसे ठेका ले लिया है। बाइक, जीप और बड़ी छोटी कारों में लगातार हूटर बजाते हुए पुलिसकर्मी स्नानार्थियों को लेकर VIP स्नान और दर्शन कराते हुए देखे गए। जिनको दूसरों को रोकने या जाने देने का अधिकार दिया गया है उन्हें आखिर कौन रोकेगा ? अब अपनी ड्यूटी के बीच यह सब इन्होंने कैसे मैनेज किया इसकी जांच किए जाने की जरूरत है।

2- प्रशासनिक अधिकारियों की गाड़ियों में भी बहुतायत मात्रा में VIP यात्रा करते परिजन एवं रिश्तेदार दिखे, यहां तक कि जिन वाहनों में कहीं भी ना रोके जाने वाले ड्यूटी पास लगे थे, ऐसे ढेर सारे वाहन पारिवारिक स्नानार्थियों के उपयोग में दिखे।

3- रैन बसेरों में भी पिक एंड चूज की व्यवस्था जिम्मेदार और एलॉट करने वालों के द्वारा अपनाए जाने की बातें सामने आईं। नतीजतन संगम क्षेत्र में ही घाट पर और आस पास सोने के लिए भीड़ मजबूर हुई। उदाहरण के लिए हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के लोगों के टेंटों के पास ही बड़े हनुमान जी की ढाल पर बने एक बैरिकेड कॉर्नर में हजारों परिवार कई दिनों से जमीन पर सोए देखे गए। ऐसे ही संगम तट पर एवं अन्य घाटों पर भी लोगों ने जमीन पर रातें काटीं। उधार रैन बसेरों में जिम्मेदारों ने जिन्हें चाहा उन्हें ही स्थान दिया।

4- जानकारी के अनुसार हम पत्रकारों और मीडिया के लिए बनाए गए रुकने के स्थानों कैंपों में भी खूब जिम्मेदार बनाए गए सूचना कर्मियों ने मनमानी की।

उदाहरणार्त –  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के टेंट्स में ढेर सारे बहुत अच्छी कवरेज कर रहे समाचार चैनलों को जगह नहीं मिली। वहां कुछ टेंट ऐसे संस्थानों के नाम पर स्थानीय स्टिंगरों को एलॉट कर दिए गए जिनकी कोई टीम यहां कवरेज करने के लिए मौजूद नहीं है। चाभी उनके कोई स्थानीय रिपोर्टर लेकर घूम रहे हैं, टेंट खाली है, परन्तु उन्हें एलॉट है, तो किसी और के लिए खाली नहीं। ……चाहें तो अधिकारी इसकी मौके पर जांच करा सकते हैं, कि क्या टीम है, और क्या कवरेज हो रहा है। सच पता चल जायेगा।
– यही हाल प्रिंट मीडिया,न्यूज एजेंसी और अखबारों के नाम पर एलॉट किए गए ज्यादातर कैंपों का भी है। वहां भी जगह नहीं है। परन्तु कवरेज जीरो है, स्थानीय स्टिंगर्स चाभियां कब्जाकर अपनी दुकान चला रहे हैं। और जिन्हें जरूरत है वो भटक रहे हैं।
– सबसे बुरा हाल तो मीडिया सेंटर के पास बने “नेशनल मीडिया” के कॉटेजस का है। यहां पत्रकारों से ज्यादा सुभान विभाग के स्थाई और अस्थाई, आउट सोर्सिंग के कर्मचारियों का और उनके परिजनों का कब्जा है। पत्रकारों के आने पर उनको बताया जाता है, कि आप डिजिटल से हैं इसलिए, अथवा आप की मान्यता नहीं है इसलिए और अगर यह सब हो भी तो जगह खाली नहीं है, बोलकर मामला खत्म कर दिया जाता है।। जब बड़ी संख्या में बाहर से आए हुए पत्रकारों को भटकना पड़ रहा है, तो आखिर इन सैकड़ों कॉटेज में रह कौन रहा है, कृपया जिम्मेदार जांच करता लें ?

इस सबके बाद, आवश्यक से ज्यादा अनावश्यक बैरिकेडिंग, बाहर से आए पुलिसकर्मियों को मार्गों की जानकारी ना होना, यात्रियों के लिए सामान रखने के लॉकर्स की समुचित व्यवस्था ना होना, और सबसे ज्यादा कर्मचारियों की मनमानी और निजी स्वार्थ ने मौनी अमावस्या के दिन ऐसी स्थितियों को पैदा होने दिया।

इसके बाद पूरी दुनिया में सनातन के सिरमौर संत राजनेता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के पवित्र इरादों को पलीता तो लगना ही था, और वहीं हुआ,

वह तो अपनी ड्यूटी को पूरी ईमानदारी से अंजाम देने वाले ढेर सारे अच्छे अधिकारियों और कर्मचारियों को साधुवाद है कि उनकी सूझबूझ और मुस्तैदी से बड़ा हादसा नहीं होने पाया, और स्थिति को जल्द ही पूर्णरूप से नियंत्रित कर लिया गया। आप की अच्छाइयों पर मां गंगा और महादेव कृपा बनाएं। अंत में यह, समीक्षा लिखने के बाद मैं कहना चाहूंगा कि, इसे दो तरीके से लिया जा सकता है।

पहला, जिम्मेदार गण स्थितियों की वास्तविकता जानकर उनमें सुधार कर पुण्य के भागी बनना चाहें, और ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति आगे ना हो।

दूसरा, यह सब लिखने के लिए मुझे ही दोषी ठहरा दें, और मुझे सरकार विरोधी घोषित कर मेरा जुलूस निकालना चाहें, जिससे कोई आगे सच्चाई लिखने की हिम्मत ना करें…

हां, यह जरूर कहूंगा, कि यह मेरे महाकुंभ लेखन का “अथश्री है, इतिश्री नहीं ……

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