प्रतिबंधित कानपुर-लखनऊ हाईवे पर धड़ल्ले से दौड़ रहे भारी वाहन, पुलिस ढूंढ रही हेलमेट
पंकज सिंह चौहान
लखनऊ ब्यूरो। लखनऊ कानपुर एलिवेटेड रोड निर्माण के चलते कानपुर और उन्नाव से लखनऊ की तरफ़ आने वाले भारी वाहन प्रतिबंधित हैं। लेकिन यहां स्थिति बिल्कुल विपरीत है। प्रतिबंधित जोन में धड़ल्ले से भारी वाहनों का आना–जाना जारी है। अब सवाल उठता है कि क्या ट्रैफिक पुलिस इन वाहनों पर रोक नहीं लगा पा रही है, या फिर वाहन चालकों में ट्रैफिक पुलिस का कोई खौफ नहीं है। या फिर ट्रैफ़िक पुलिस की सह पर नो एंट्री में एंट्री का खेल चल रहा है।
राजधानी लखनऊ का सफर एक अक्टूबर से चार जिलों से जाने वाले भारी वाहनों के लिए बदला गया था, इन जिलों में कानपुर नगर के साथ कानपुर देहात, फतेहपुर और उन्नाव जनपद भी शामिल है, 1 अक्टूबर रात 8 बजे से इसे लागू कर दिया गया था जिससे राहगीरों को जाम की समस्या से निजात मिल सके। जाम से निजात मिलना तो दूर की बात इस समय स्थिति यह है कि कानपुर–लखनऊ हाईवे पर चल रहे निर्माण कार्य के चलते राहगीरों को भीषण जाम की समस्या से जूझना पड़ रहा है, हाईवे संकरा होने के कारण मार्ग पर रोजाना भारी वाहनों की लंबी कतार लग जाती है, कई–कई घंटों तक राहगीर जाम में फंसे रहते हैं।
भारी वाहनों के प्रवेश की पड़ताल “करण वाणी” ने की तो हर रोज ऐसे वाहन लखनऊ–कानपुर हाईवे पर दौड़ते हुए दिखाई दिए। बता देंकि ट्रैफिक व्यवस्था बनाए रखने व हादसों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से प्रशासन द्वारा लखनऊ–कानपुर रोड पर भारी वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया गया था। इसके लिए बाकायदा कानपुर से लखनऊ तक हर चौक चौराहे व बैरियर पर भारी वाहनों की नो एंट्री के चेतावनी बोर्ड लगाए गए हैं तो वहीं पुलिस कर्मी भी तैनात किए हुए हैं। इसके बावजूद ऐसे वाहनों पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध नहीं लग पा रहा है, जिससे ट्रैफिक व्यवस्था बाधित हो रही है वहीं कानपुर–लखनऊ एलिवेटेड निर्माण स्थल पर किसी बड़े हादसे की भी आशंका बनी रहती है।
सूत्रों की मानें तो नो एंट्री में एंट्री के लिए प्रति बैरियर ट्रैफ़िक पुलिस प्रति गाड़ी 500 रुपये सुविधा शुल्क वसूलती है, जिसने 500 रुपया दिए उसको नो एंट्री में एंट्री मिल जाती है।
नाम न छापने की शर्त पर ट्रक मालिक बताते हैं कि नो एंट्री में आने के लिए प्रति बैरियर प्रतिगाड़ी 500 रूपए देने पड़ते हैं, उन्नाव से लखनऊ तक आने में एक गाड़ी पर 2500 रुपया ख़र्च होता है, जो ट्राफिक पुलिस नो एंट्री मेंएंट्री देने के लिए वसूलती है।
ओवरलोड वाहनों पर रोक लगाने में पुलिस नाकाम
हाइवे पर दौड़ रहे ओवरलोड वाहनों पर एआरटीओ प्रवर्तन अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं। इसके चलते सड़कें ध्वस्त हो रही हैं और राहगीरों की जान भी खतरे में है। सड़कों पर बालू, गिट्टी लदे ट्रक चलने के साथ ही अन्य सामग्रियों के भी ओवरलोड वाहन हर बैरियर को पार कर रहे हैं।
प्रतिबंधित क्षेत्र लखनऊ–कानपुर हाइवे से रोजाना सैकड़ों ट्रक अलग–अलग रूटों के लिए निकलते हैं। इनमें से अधिकतर ट्रक ओवरलोड ही निकलते हैं। यह हालत तब है जब एआरटीओ प्रवर्तन रोजाना चेकिंग की बात कहते हैं। वाहनों में लगातार बढ़ रही ओवरलोडिंग पर रोक लगाने के लिए विधायक से लेकर मंत्री तक बात करते हैं लेकिन उनकी बातें संबंधित अधिकारियों के कानो तक नहीं पहुंचती। इससे सड़कें भी खस्ताहाल होती जा रही हैं। मोटर मालिक भी अपने वाहनों को सड़क पर बिना रोकटोक दौड़ाने के लिए अधिकारियों से लेकर सफेद पोश नेताओं के खास बने हैं।
ऐसे पास होते हैं ओवरलोड वाहन
माफिया की दो से तीन गाड़ियां लगभग 25 से 50 किलोमीटर के अंतराल पर ट्रक चालकों को लोकेशन देती हैं। ये 20 से 50 ओवर लोड ट्रकों को इकट्ठा करते हैं। इनकी सेटिंग पीटीओ के साथ विभागीय कर्मचारियों से भी रहती है। इससे उनको पूरी सूचना सटीक मिलती है। जब एआरटीओ चेकिंग पर नहीं रहते हैं उस दौरान पीटीओ को पांच सौ से एक हजार रुपये देकर ट्रक पास करा देते हैं।
नापतौल कांटे का आदेश भी हवा में
ओवरलोडिंग खत्म करने के लिए भले ही सरकार ने घाट संचालकों को नापतौल कांटे लगाने का आदेश दिया है। लेकिन घाट संचालक स्थानीय अधिकारियों की मदद से धड़ल्ले से ओवरलोडिंग करा रहे हैं।