किन्नरों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए किन्नर भोज का आयोजन
किन्नरों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिये नवरात्रि के अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्रा गरिमा सिंह ने कराया किन्नर भोज, वस्त्र व मिठाई देकर उन्हें किया सम्मानित
हमारे समाज का ताना–बाना मर्द और औरत से मिलकर बना है, लेकिन एक तीसरा जेंडर भी हमारे समाज का हिस्सा है, इसकीपहचान कुछ ऐसी है जिसे सभ्य समाज में अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता, समाज के इस वर्ग को थर्ड जेंडर, किन्नर या हिजड़े के नामसे जाना जाता है। पूरे समाज में इनके दिल की बात और आवाज़ कोई सुनना नहीं चाहता क्योंकि पूरे समाज के लिए इन्हें एक बदनुमादाग़ समझा जाता है, लोगों के लिए ये सिर्फ़ हंसी के पात्र हैं।
लेकिन, हाल ही में इनकी ज़िंदगी में झांकने की कोशिश की है लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्रा व सोशल वर्कर गरिमा सिंह ने इनकीज़िंदगी के जो रंग आज तक किसी ने नहीं देखे थे उन रंगों को समाज में गरिमा सिंह ने दिखाया है, गरिमा बीते 3 वर्षों से किन्नरों के हकके लिए संघर्ष कर रही है। किन्नरों के मान सम्मान के लिए वह प्रतिवर्ष नवरात्र के समापन अवसर पर किन्नर अर्धनारीश्वर भोज काआयोजन करती है। इस बार भी गरिमा सिंह ने नवरात्र समापन के मौके पर अलीगंज में किन्नर भोज का आयोजन करके उन्हें भोजन कराकर वस्तु व मिठाई देकर सम्मानित किया। गरिमा ने किन्नरों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए उनका सम्मान करके प्रदेशव देश में एक अच्छा संदेश दिया।
समाज में लिंग के आधार पर कार्य में भेदभाव: गरिमा सिंह
समाज हर तरह के लोगों से मिलकर बनता है, जिसमें अलग–अलग लोगों का भिन्न–भिन्न पेशा होता है। जिसका सम्मान करना सबका दायित्व बनता है। लेकिन समाज में लिंग के आधार पर कार्य में भेदभाव आमतौर पर देखने को मिलता है। समाज में आज भी किन्नर समुदाय को सम्मान या दर्ज़ा नहीं दिया गया है , जो समाज में रहने वाले आम नागरिकों के पास मौजूद है। यह वही किन्नर समुदाय है जोलोगों की छोटी से बड़ी खुशियों में शामिल होता है। लोगों के चेहरों पर मुस्कान लाता है। समाज कहता है कि किन्नर द्वारा दिया गयाआशीर्वाद बहुत शुभ होता है। इसके बावजूद भी समाज में उन्हें सम्मान ना मिलना, समाज में रहने वाले लोगों की दोहरी मानसिकता कोसाफ़ तौर पर दर्शाता है।
दुआएं लेते हैं, लेकिन सम्मान नहीं देते: गरिमा सिंह
शादी–ब्याह में नाच–गाकर या किसी बच्चे की पैदाइश पर जश्न मनाकर ये अपनी कमाई करते हैं, माना जाता है कि जिस परिवार कोकिन्नर समाज दुआ देता है, वो खूब फलता–फूलता है, पुराने दौर में लोग इनके नाम का पैसा निकालते थे और इनकी झोली भर देते थे, आमतौर पर धारणा है कि किन्नरों का दिल नहीं दुखाना चाहिए, लेकिन इन्हें सम्मान जैसी चीज़ भी नसीब नहीं होती जोकि किसी भीइंसान का हक़ है। किन्नरों के भी वही एहसास और ख़्वाहिशें हैं जो किसी भी मर्द या औरत के होते हैं, वो भी चाहते हैं समाज में लोग उन्हेंउनके नाम से पहचानें। किन्नरों की दुआएँ सब लेते हैं लेकिन उन्हें सम्मान कोई नहीं देना चाहता।