उत्तर प्रदेश

अर्धनारी: किन्नर समाज के साथ सहानुभूति क्यों नहीं दिखलाता समाज, किन्नर प्रियंका सिंह रघुवंशी से ख़ास बातचीत……

गरिमा सिंह

ये बहुत बड़ी विडम्बना है कि बिना किसी गलती के असीम यातनाओं की सजा उन्हें क्यों दी जाती है और कौन इसके लिए जिम्मेदार है।जिस तरह से कुछ लोग जन्मान्ध तथा कुछ शरीर और दिमाग की विमारियों के साथ पैदा होते हैं। उसी प्रकार कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिनके जन्म के साथ हुई दैवी घटनाओं के कारण कुछ ऐसा शारीरिक विकार होता है जिसकी वजह से उन्हें उनका परिवार, समाज औरकानून, कोई भी उन्हें मनुष्य तक समझने की संवेदना नहीं दिखालाता है। यहाँ तक कि उनका सम्बोधन भी एक असम्मानित तरीके सेकिया जाता है। जी हाँ, मैं जिनकी बात कर रही हूँ उनको समाज कई तरह से सम्बोधित करता है जिसमें मुख्य हैहिजड़ा, किन्नर, नपुंसक, छक्का, थर्ड जेण्डर, उभयलिंगी आदि। विकलांग पैदा होने वाले लोगों को तो परिवार, समाज और कानून संरंक्षण देता है, उनकेसाथ सहानुभूति रखता है किन्तु किन्नर, हिजड़ा या नपुंसक के साथ कोई भी सहानुभूति नहीं दिखलाता है। किन्नर समुदाय इसी समाजका हिस्सा है, लेकिन अभी भी उनको समाज में अलग ही नजर से देखा जाता है, अभी भी किन्नर समाज को समाज में वह सम्मान नहींमिलता, जो उनको मिलना चाहिए।

इसी मुद्दे पर लखनऊ मिस ट्रांस क्वीन प्रियंक सिंह किन्नर से ख़ास बातचीत की, प्रियंका सिंह एक सोशल वर्कर एक्टिविस्ट और उत्तरप्रदेश के स्तर पर किन्नर समाज का वो प्रतिनिधित्व करती हैं!

प्रियंक सिंह किन्नर से बातचीत

सवाल शुरुआत से तो प्रियंका, प्रियंका नहीं थी, दस साल पहले आप क्या थी? आपका नाम प्रियंका से पहले क्या था?

जवाब  शिव सिद्धार्थ के नाम से मुझे जाना जाता था। शिव मेरा घर का नाम था। मेरी लाइफ़ में कुछ चीजें ऐसी होने लगी जिनकी वजहसे मुझे लगा घर से थोड़ा सा डिस्टेंस बना करके हम अपनी लाइफ को स्टार्टअप करें।

सवाल आपको कब पता चला कि आप स्ट्रेट नहीं है? आपने उस समय क्या महसूस किया और आपकी फैमिली ने क्या महसूस किया?

जवाब 2010 में 2012 में मेरा एक फ्रेंड था, और वो लखनऊ मेँ रहता था। तो हम अपने घर से उसे चोरी चोरी मिलने जाते थे। तो 1 दिन मिलने गए और काफी लेट हो गए, हम सो गए वही उसके घर पे। 9:30 बज गए। और हम एकदम से जल्दी से उठे घर वापसी मेंपहुंचे। जब घर पहुंचे तो, घर का माहौल बहुत ही भय वाला था, डरावना था, आते ही इतनी सारी चीजें मैंने सुनी, पेरेंट्स ने भी  मुझे बहुतकुछ बोला। कुछ ऐसी बातें थीं, जो मेरे दिल को एकदम छन्नी करके रख दिया। ऐसा लग रहा था, कि एकदम नथिंग। मेरा स्कूल बैगथा, और फिर मैंने कुछ अपने कपड़े रखें। और जब हम घर से निकले, तो मेरे पास सिर्फ ₹500 थे। मैंनेएक एजेस कॉल सेंटर हैं, हजरतगंज में। वहाँ मैंने ज्वॉइन करा, चार पांच फ्रेंड थे। मेरे पास रेंट का भी पैसा नहीं था। उस टाइम काउंटिंग करके, राशन वगैरह लाएँ, खाने पीने का सारा कुछ करें, वहाँ पे यह था, कि दिन की ट्रेनिंग होती थी, जो फ्री ऑफ कॉस्ट थी। मतलब उसका कोई पेमेंट नहींमिलता था, तो हम लोग करते रहे।

सवाल जब आप कॉल सेंटर में जॉब कर रही थी तो वहाँ का स्टाफ़ जानता था कि आप शिव है।

जवाब हाँ, वहाँ पर कॉल्स का एक प्रेशर रहता है, कि आपको इतने कॉल्स अटेंड करने हैं, एक दिन हम कॉल सेंटर पहुँचें और उस दिनमैंने कुछ नहीं खाया था, डायरेक्ट हम पहुंचे ही थे, अभी टीएल आया, उसमें बहुत बत्तमीजी से मुझसे बात की और मुझे गुस्सा आया, उसदिन पहली बार हमने इसी वर्कप्लेस में ताली बजायी, उसके बाद मैंने वहाँ का हेडफोन अपने कान से हटाया, वही टेबल पर रख दिया, उसके बाद से आज तक हम कही जॉब पर नहीं गए। फिर मैंने एक दिन मम्मी को फ़ोन किया मम्मी से मैंने बात की। फिर मैंने अपने आपको सारा कुछ बता दिया।

तो उनका रिएक्शन पहले तो बहुत निगेटिव रहा। थोड़े दिन तक, डेढ़ साल तक नेगेटिव रहे। काफी ज्यादा हद तक और फिर धीरे धीरे वोलोग एक्सेप्ट करने लगे।

सवालअब घर पर प्रियंका बनके जाती हो या शिवा बनके

जवाब पहले तक था, कि हाँ। शिव बन के जाते थे। फिर बाल बड़े हो गए, सारी चीजें हो गई धीरे धीरे। बस यही है, की जिस गेटअप मेंआपके सामने बैठे हैं, इस गेटअप में अपने घर जाते हैं।

सवालकिन्नर या ट्रांसजेंडर! इनके दिल में दर्द बहुत होता है। क्या प्रियंका के अंदर दर्द है?

जवाब अगर हम अपनी कम्युनिटी को लेकर बात करे तो, सिर्फ यह मेरा ही दर्द नहीं है। मेरी कम्युनिटी के हर उस मेंबर का दर्द है।जिन्होंने सारी चीजें रियलाइज करा, सारी चीजें फील करा। अब मैंने जो पार्टियां रखी ना, इसका मोटिव ये भी था, कि आज जो आपलखनऊ में कम्युनिटी को इतना ओपन देखते हो, गे कम्युनिटी हो गई, समलैंगिक। लेस्बियन वगैरह। खुला घूम रहे हैं, चारबाग में। फ्रीमाइंड से सब घूमते है। पहले ये सब नहीं घूम सकते थे, धीरे धीरे मैंने लोगों को खोला, लोगों के बीच संपर्क बनाया। लखनऊ के बहुतसारे किन्नर  प्रियंका का क्या दर्द है…? वही रहे हैंहाँ! है ना। तो पार्टियां रखा, तो वहाँ पे लोग अपना परेशान है, डिप्रेशन में रहतेथे। तो वहाँ  दो चार या पांच घंटे के लिए सब लोग इकट्ठा होते थे, नाश्ता करते थे, अपने स्ट्रेस को दूर करते थे।

मैं जहाँ तक देखती हूँ, समाज कहीं ना कहीं दूरी बनाता है। और आज के टाइम पे। हम देखते हैं, जो पढ़ा लिखा समाज है वो जुड़ता है, मेरी बहुत सारी लड़कियां दोस्त है, बहुत प्यार से मिलती है, बातचीत करती है, सोशल मीडिया पर जुड़ी स्टोरीज वगैरह लगाती है। दीदी, बुआ, मौसी बोलती है।

सवालफ्यूचर में लखनऊ के ट्रांसक्वीन, प्रियंका सिंह अपने आप को कहाँ देखना चाहती है?

जवाब कुछ भी शाम दाम दंड भेद लगा करके अगर प्रियंका ने ये ठान लिया, अगर ये मैंने सोच लिया, कि ये चीज़ मुझे चाहिए तोचाहिए, तो मुझे चाहिए। एक छोटा सा फुलझड़ी का या नीम का या करेले का एक फूल छोटा सा।

सवालराजनीति में आने का विचार कैसे आया

जवाब इस सवाल का जवाब देते हुए प्रियंका ने कहा, “मैं लखनऊ की ट्रांस एक्टिविस्ट हूं। राजनीति में बहुत पहले से हूं। 2022 केयूपी विधानसभा चुनाव से ज्यादा एक्टिव हुई हूं। जब भी अपने घर से निकलकर रेड लाइट पर खड़े बच्चों को देखती हूं, तो दुख होता है।इसलिए मैंने फ़ैसला किया कि राजनीति में आकर अपने समाज के साथ अन्य मजबूर लोगों के दुख को दूर करूंगी।

सवालआप खुद को समाज सेविका कहती हैं। अब तक आपने अपने समाज और बच्चों के लिए क्या किया?

जवाब इसके जवाब में प्रियंका ने कहा, “मैं शिव फाउंडेशन NGO चलाती हूं। किन्नर समाज के अधिकारों के लिए लड़ती आई हूं। जबभी उनके साथ अन्याय होता दिखा मैंने लीगल एक्शन लिया। इसके साथ ही मैं गरीब बेटियों का कन्यादान करती हूं। कोरोना काम में43 दिनों तक गरीबों को खाना खिलाया, सैनिटरी पैड बांटे। NGO से किन्नर समुदाय के 3 हजार लोग जुड़े हैं।

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