उत्तर प्रदेश

पितृपक्ष में श्राद्ध, पिंडदान एवं तर्पण…..

कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य, लखनऊ

पितृपक्ष में अपने पिता की मृत्युतिथि पर श्राद्ध, पिंड दान तर्पण करना शास्त्रों के अनुसार अत्यंत आवश्यक है। श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बनाहै, इसलिए यह संस्कार श्रद्धा के साथ करना चाहिए। जो लोग सभी श्राद्ध,  पिंडदान तर्पण कर सकें उन्हें कम से कम अपने पिता कीमृत्यु तिथि पर पितृपक्ष में अवश्य यह संस्कार करना चाहिये। महर्षि जाबालि ने लिखा है कि श्राद्ध करने से पुत्र, आयु, आरोग्य, अतुलऐश्वर्य और अभिलाषित वस्तुओं की प्राप्ति होती है।

पुत्रणयुस्तथारोग्यम

ऐश्वर्यमतुलं तथा प्राप्नोति

पंचमां कृत्वा श्राद्धन कामान्श्चपुसक्लान्न।

पितृपक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से प्रारम्भ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक रहता है। इस साल पितृ पक्ष 29 सितंबर, शुक्रवारसे लेकर 14 अक्तूबर 2023, शनिवार तक होगा। जिनके पिता की मृत्यु पूणिमा को हुई है वे पूर्णिमा को ही श्राद्ध करते हैं। अन्य लोगोद्वारा पितरों का श्राद्ध पिता की मृत्यु तिथि के अनुसार प्रतिपदा से अमावस्या तक किया जाता है। इसमें पिता, पितामह (दादा) एवं  प्रपितामह (परदादा) को सपत्नीक (यदि उनकी पत्नी का भी स्वर्गवास हो चुका है) पिंडदान किया जाता है। अर्थात माता, दादी परदादीका श्राद्ध भी उसी समय किया जाता है। एवं उसी के साथ मातामह (नाना) प्रमातामह (परनाना) वृद्धप्रमातामह (वृद्ध परनाना) नानी, परनानी वृद्ध परनानी सहित छः पिंडदान किये जाते है। पिंडदान के बाद कम से कम नौ या 11 ब्राह्मणों को विधिवत भोजन करायाजाना चाहिए। अगर 11 ब्राह्मण को करवा सकें तो 9, 7, 5 या तीन ब्राह्मनो को भोजन करवायें। यदि अच्छे सात्विक ब्राह्मण मिलें तोकम से कम एक सात्विक ब्राह्मण को अवश्य भोजन कराना चाहिए, अथवा उपरोक्त के समतुल्य भोज्य पदार्थ दान करना चाहिए एवं मृतव्यक्ति के उद्देश्य से उसके पसंद की चीजों का दान करना चाहिए यथा वस्त्र आदि। इसके साथ ही अन्य गरीबों को भी यथाशक्ति दानकरना चाहिये।

शास्त्रों में पित्रपक्ष में मातृनवमी करने का भी विधान है, जिसके अनुसार बहुएं अपनी सासु माँ के लिए श्राद्ध करती हैं। वंश में किसी भीसौभाग्यवती मृत स्त्री के लिए मातृनवमी को श्राद्ध किये जाने का नियम है, इसके लिए प्रथा यह है की बहुएं जिस दिन से पितृपक्ष लगताहै उसी दिन से घर के अंदर आँगन में पितृ स्थान को मिटटी से लीप कर एक वेदी बनाती हैं, उस पर एक दातून एक लोटा पानी कुछ फ़ूलचावल और तिल रखती हैं। यह प्रक्रिया नवमी तक चलती है। नवमी के दिन अच्छेअच्छे पकवान बनाकर वहां अर्पित करें, फिरयथाशक्ति भोजन इत्यादि दान कर ही स्वयं भोजन करती हैं। यह मातृ नवमी इस वर्ष 07 अक्तूबर 2023 को है। सौभाग्य की इच्छारखने वाली हर बहू को मातृनवमी का विधिवत श्राद्ध करना चाहिए।

Note :- कृपया जो इस श्रद्धा में विश्वास नहीं करते हैं, यह लेख उनके लिये नहीं है, अतः उनसे क्षमा माँगता हूँ और अनुरोध करता हूँ किहमारी श्रद्धा पर आक्रमण करें।

इस संबंध में एक छोटी सी रचना:-

संस्कार शाला

पंचैव पूजयन लोके,

यश: प्राप्नोति केवलम।

देवान पितृन मनुश्याश्च,

भिक्षून अतिथि पंचमान।

पितर, देवता,अतिथगण,

सब पूजनीय कहलाते हैं,

सारे मनुष्य याचक भी,

इनकी श्रेणी में आते हैं।

धर्म सनातन यह कहता है,

इन पाँचो की पूजा करिये,

सच्चे मन से स्तुति करके,

इन सबकी ही सेवा करिये।

आचरण जो ऐसा करते हैं,

सम्मान तथा यश पाते हैं,

ईश्वर भी इन पर कृपा करे,

जो यश देकर यश पाते हैं।

अर्थात्हमारी प्राचीन सनातन संस्कृति के अनुसार प्रत्येक प्राणी को देवता, पितर, मनुष्य, याचना करने वाले तथा अतिथि, इन पाँचोंकी सदैव सच्चे मन से अपने सामर्थ्य के अनुसार पूजास्तुति सेवा करनी चाहिए। इससे जीवन में यश और सम्मान प्राप्त होता है औरभगवान प्रसन्न होकर सभी कार्य सफल करवा देते हैं।

अतिथि देवो भव।

मातृपितृ देवो भव॥

(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति karnvaninews उत्तरदायी नहीं है।)

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