पढ़ें रक्षाबंधन का मुहूर्त और रक्षा बंधन की प्रचलित कथाएँ
कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य
रक्षा बंधन 2023: इस बार रक्षाबंधन का मुहूर्त 30/31 अगस्त, बुधवार रात 9:00 बजे से गुरुवार सुबह 7:15 के बीच मनाया जा रहाहै, क्योंकि 30 अगस्त को रात 8:42 बजे तक भन्नी– भद्रा का समय है जिसमें रक्षा बंधन निषेध होता है, इसलिए 31 अगस्त गुरुवार कोउदयातिथि में रक्षा बंधन मनाना शुभ है।
यह त्योहार भाई–बहन के प्रेम का त्योहार है। इसमें भाई बहन की रक्षा का वचन देता है। पौराणिक कथाओं में भी रक्षाबंधन का जिक्र है।कहा जाता है कि एक बार माता लक्ष्मी ने राजा बलि को अपना भाई बनाकर भगवान विष्णु को उनके दिए गए वचन से ‘मुक्त‘ करायाथा।
रक्षाबधंन पर यह पौराणिक कथा
माता लक्ष्मी ने सबसे पहले राजा बलि को बांधी राखी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माता लक्ष्मी ने राजा बलि को सबसे पहले राखी बांधी थी। एक बार राजा बलि ने 100 यज्ञ पूरा करकेस्वर्ग पर आधिपत्य का प्रयास किया, इससे इंद्र डर गए। वे भगवान विष्णु के पास गए और उनसे रक्षा का निवेदन किया। तब भगवानविष्णु ने वामन अवतार धारण किया।
वे वामन अवतार में राजा बलि के पास गए और भिक्षा में तीन पग जमीन मांगी। बलि ने उनको तीन पग देने का वचन दिया। तब भगवानविष्णु ने दो पग में पूरी पृथ्वी व स्वर्ग लोक नाप लिया। यह देखकर राजा बलि समझ गए कि यह वामन व्यक्ति कोई साधारण वामन नहींहो सकता है। उन्होंने अपना सिर वामन के आगे कर दिया। यह देखकर भगवान विष्णु राजा बलि से प्रसन्न हुए और उनसे वर मांगने कोकहा। साथ ही बलि को पाताल लोक में रहने को भी कहा, तब राजा बलि ने कहा कि हे प्रभु! पहले आप वचन दें कि जो वह मांगेंगे, वहआप उनको प्रदान करेंगे। उनसे छल न करेंगे। भगवान विष्णु ने उनको वचन दिया। तब बलि ने कहा कि वह पाताल लोक में तभी रहेंगे, जब आप उनके आंखों के सामने हमेशा प्रत्यक्ष रहेंगे। यह सुनकर विष्णु भगवान दुविधा में पड़ गए। उन्होंने सोचा कि राजा बलि ने तोउनको पहरेदार बना दिया। अपने वचन में बंधे भगवान विष्णु भी पाताल लोक में राजा बलि के यहां रहने लगे। इधर माता लक्ष्मी विष्णुभगवान का इंतजार कर रही थीं। काफी समय बीतने के बाद भी नारायण नहीं आए। इसी बीच नारद जी ने बताया कि वे तो अपने दिएवचन के कारण राजा बलि के पहरेदार बने हुए हैं। माता लक्ष्मी ने नारद से उपाय पूछा, तो उन्होंने कहा कि आप राजा बलि को भाई बनालें और उनसे रक्षा का वचन लें।
तब माता लक्ष्मी ने एक दिव्य महिला का रूप धारण किया और राजा बलि के पास गईं। रोती हुई महिला को देखकर बलि ने कारणपूछा। उन्होंने कहा कि उनका कोई भाई नहीं है। इस पर बलि ने उनको अपनी धर्म बहन बनाने का प्रस्ताव दिया। जिस पर माता लक्ष्मी नेराजा बलि को रक्षा सूत्र बांधा और रक्षा का वचन लिया। दक्षिणा में उन्होंने बलि से भगवान विष्णु को मांग लिया। इस प्रकार मातालक्ष्मी ने बलि को रक्षा सूत्र बांधकर भाई बनाया, साथ ही भगवान विष्णु को भी अपने दिए वचन से मुक्त करा लिया।
रक्षासूत्र का मंत्र है:-
“येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:, तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे माचल माचल”
इस मंत्र का सामान्यत: यह अर्थ लिया जाता है कि दानवों के महाबली राजा बलि जिससे बांधे गए थे, उसी से तुम्हें बांधता हूं। हे रक्षे!(रक्षासूत्र) तुम चलायमान न हो, चलायमान न हो। धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षा सूत्र बांधते समय ब्राह्मणया पुरोहत अपने यजमान को कहता है कि जिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे अर्थात् धर्म मेंप्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं। इसके बाद पुरोहित रक्षा सूत्र से कहता है कि हेरक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना। इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करनाहै।”
रक्षा बंधन की आधुनिक कहानियों में एक यह भी कहानी है कि मुग़ल सम्राट हुमायूँ को चित्तौड़ की विधवा महारानी कर्मावती ने राखीभेजकर गुजरात के राजा बहादुर शाह के ख़िलाफ़ सहायता माँगी थी, जिसे सम्राट हुमायूँ ने अपनी सेना चित्तौड़ भेजकर रक्षा सूत्र का मानरखा था ।
इसी तरह सिकंदर की पत्नी ने हिंदू शत्रु राजा पुरू को राखी बाँधकर सिकंदर को युद्ध में जान बख़्स देने का वचन ले लिया था ।
इसके अलावा राजपूत महिलायें युद्ध भूमि में जाने वाले राजपूतों को कुंकुम तिलक लगाकर रक्षा सूत्र बाँधकर विजयश्री का विश्वासरखकर विदा करती थीं कि विजयी होकर योद्धा वापस आएँगे ।
इसी प्रचलन में रक्षा बंधन के दिन कहीं कहीं कुल पुरोहित अपने यजमानों को रक्षा सूत्र बांधकर निम्न लिखित मंत्र के पूरे वर्ष उनकी रक्षाका आशीर्वाद देते हैं।
“येन बद्धो बलि राजा, दानवेन्द्रो महाबलः ।
तेन त्वांमनुबध्नामि, रक्षेमाचल माचल।”
रक्षा बंधन पर कविता
राखी का यह दिन पावन,
भाई–बहन का प्यार ये अनुपम,
थाल सजाई है बहना ने,
रोली, चंदन, अच्छत, कुमकुम।
भाई की मस्तक पूजा कर,
करे आरती दीपक की लव,
चंदन रोली भाई सिर सोहै,
देकर आशीष शतायु भव।
पावन रक्षा सूत्र पूज कर,
बहना जब रक्षा मंत्र पढ़े,
सजे कलाई प्रिय भाई की,
अति अनुराग उमंग बढ़े।
भैया हर पल रक्षा करना,
यह वचन प्रतिज्ञा ले बहना,
भाई प्यार से वादा करता,
बहन सदा निर्भय रहना ।
प्रेम, समर्पण और सुरक्षा,
रक्षा बन्धन का है त्योहार,
घर, समाज में प्रेम जगाता,
अति अद्भुत राखी का प्यार।
वचन बद्धता रक्षा बंधन,
परम्परा से जुड़ा है भारत,
प्राण जायँ पर वचन न जाये,
आदित्य’ यही सच्चा स्वारथ ।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख मेंप्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति karnvaninews उत्तरदायी नहीं है।)