लखनऊ

आजकल उंगली ही निभा रही है रिश्ते…….

कर्नल आदि शंकर मिश्र, आदित्य लखनऊ।

 

आजकल उंगली ही निभा रही है रिश्ते,

पर जुबाँ से निभाने का अवसर कहाँ है,

टच में व्यस्त सब, टच में है कोई नहीं,

नज़दीकियों की दूरियाँ हैं मिटती नहीं।

तीन दिन, पाँच सौ लोगों से मुलाक़ात

हो चुकी और बात भी होती रहती है,

टच में स्वर भी होते हैं, बोलते भी हैं,

 

लोग अक्षर समझ कर भुला भी देते हैं।

धरा के ये पेंड़ और इनके पत्ते इनकी

शाखायें भी तब परेशान हो जाते हैं,

अगर पशु पक्षी हिंदुस्तान के हिन्दू,

मुसलमान, सिख, ईसाई हो जाते हैं।

 

इस देश के फल फूल सूखे मेवे भी,

यह देख कर हैरान परेशान हो जाते हैं,

जब जाने कब नारियल हिन्दू और

खजूर इस देश के मुस्लिम हो जाते हैं।

 

ये गरीब मस्जिद को जानते हैं ,

मन्दिर को और चर्च को जानते हैं,

जो भूखे पेट वस्त्र विहीन होते हैं,

वो बस केवल रोटी को पहचानते हैं।

 

हमारे जैसों का यही अंदाज़ तो इस

दुनिया भर में ज़माने को खलता है,

कि देश के दीपक का प्रकाश भी हवा

के झोकों के खिलाफ क्यों जलता है।

 

हम अमन पसंद हैं दोस्तो हमारे इस

शहर को तो दँगा मुक्त ही रहने दो,

लाल और हरे में हमें अब मत बांटो,

लहराता तिरंगा मेरे दिल में बसने दो।

 

लहराता तिरंगा ऊँचे छत पर उड़ने दो,

लाल रंग ऊर्जा का, हरा हरियाली का,

आदित्य श्वेत रंग शान्तिअहिंसा का,

अशोक चक्र प्रतीक न्याय धर्म का।

 

वंदेमातरम्, वंदेमातरम्, सुजलाम,

सुफ़लाम, मलयज, शीतल धारा,

आदित्य लहराए ऊँचा तिरंगा न्यारा,

अमृत उत्सव मना रहा है भारत प्यारा।

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