लखनऊ
हजारों ख्वाहिशों का सैलाब लपेटे….
डॉ. विदुषी सिंह, लखनऊ
वादा
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लहरों को जो रेत से प्यार हो जाए तो, क्या लौटेंगी फिर भी सागर में ही।।
फिर चाहे वो मन से जाए, बेमन ही मनमानी को मंजूरी दे दे,
वो लौटेंगी फिर भी सागर में ही।।
ये उठती हैं पूरे जुनून में,
हजारों ख्वाहिशों का सैलाब लपेटे,
लहरों के शोर में, अपने इरादे बयां करते हुए,
फिर छूकर रेत को, जैसे सारी तमन्नाएं एक पल में पूरी करके,
वो लौटती हैं फिर उस सागर में ही।।
न उनके शोर में दिखावा, न ही हौंसलों में किसी कायरता की मिलावट
वो तो कुछ अधूरे वादें हैं, बस जिन्हें पूरा करने चाहत को किनारे करके वो लौटेंगी ,फिर उस सागर में ही।।