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मणिपुर हिंसा: दंगाइयों को देखते ही गोली मारने का आदेश
मणिपुर के राज्यपाल ने हिंसाग्रस्त इलाकों में दंगाइयों को देखते ही गोली मार देने के राज्य सरकार के फैसले को मंजूरी दे दी है. इससे पहले हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में धारा 144 लागू कर दी गई थी. राज्य में अगले पांच दिनों के लिए इंटरनेट भी बंद कर दिया गया है।
मणिपुर में आदिवासी आंदोलन के दौरान बुधवार को हिंसा हुई, जिसकी चपेट में आठ जिले आ गए. अब मणिपुर के हिंसाग्रस्त माहौल को देखते हुए प्रभावित इलाकों में दंगाइयों को देखते ही गोली मार देने के आदेश दे दिए गए हैं।
मणिपुर के राज्यपाल ने हिंसाग्रस्त इलाकों में दंगाइयों को देखते ही गोली मार देने के राज्य सरकार के फैसले को मंजूरी दे दी है. इससे पहले हिंसाग्रस्त क्षेत्रों में धारा 144 लागू कर दी गई थी. राज्य में अगले पांच दिनों के लिए इंटरनेट भी बंद कर दिया गया है।
मणिपुर में मौजूदा स्थिति के मद्देनजर मोबाइल इंटरनेट के बाद ब्रॉडबैंड सेवाएं भी सस्पेंड कर दी गई है. सरकार ने रिलायंस जियो फाइबर, एयरटेल एक्सट्रीम और बीएसएनएल को ब्रॉडबैंड और डेटा सेवाएं रोकने का आदेश दिया है. यह रोक अगले पांच दिनों तक जारी रहेगी।
मणिपुर हिंसा पर मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा ने शांति की अपील की है. उनका कहना है कि धार्मिक स्थानों पर हमले हमारे समाज के लिए सही नहीं है।
मणिपुर में असम राइफल्स की 34 और सेना की 9 कंपनियां तैनात हैं. इनके अलावा गृह मंत्रालय ने रैपिड एक्शन फोर्स की भी पांच कंपनियों को मणिपुर भेज दिया है. हालांकि, इसके बावजूद मणिपुर में बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है।
बताया जा रहा है कि अब तक साढ़े सात हजार लोगों को सुरक्षित जगहों पर ले जाया जा चुका है. हालात को देखते हुए आठ जिलों- इम्फाल वेस्ट, काकचिंग, थौबाल, जिरिबाम, बिष्णुपुर, चुराचांदपुर, कांगपोकपी और तेंगनौपाल में कर्फ्यू लगा दिया गया है. इसके अलावा, पूरे राज्य में अगले पांच दिन के लिए मोबाइल इंटरनेट को बंद कर दिया गया है. हालांकि, ब्रॉडबैंड सर्विसेस चालू रहेंगी।
बवाल किस बात पर?
इस सारे बवाल की जड़ को ‘कब्जे की जंग’ भी माना जा सकता है. इसे ऐसे समझिए कि मैतेई समुदाय की आबादी यहां 53 फीसदी से ज्यादा है, लेकिन वो सिर्फ घाटी में बस सकते हैं.।
वहीं, नागा और कुकी समुदाय की आबादी 40 फीसदी के आसपास है और वो पहाड़ी इलाकों में बसे हैं, जो राज्य का 90 फीसदी इलाका है।
मणिपुर में एक कानून है, जिसके तहत आदिवासियों के लिए कुछ खास प्रावधान किए गए हैं. इसके तहत, पहाड़ी इलाकों में सिर्फ आदिवासी ही बस सकते हैं।
चूंकि, मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते. जबकि, नागा और कुकी जैसे आदिवासी समुदाय चाहें तो घाटी वाले इलाकों में जाकर रह सकते हैं।
मैतेई और नागा-कुकी के बीच विवाद की यही असल वजह है. इसलिए मैतेई ने भी खुद को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की मांग की थी।
ताजा बवाल कैसे शुरू हुआ?
- दरअसल, हाल ही में मणिपुर हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने एक आदेश दिया था. इस आदेश में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेई को भी अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा था।
- मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा की मांग करने वाले संगठन का कहना है कि ये सिर्फ नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का मुद्दा नहीं है, बल्कि ये पैतृक जमीन, संस्कृति और पहचान का मसला है. संगठन का कहना है कि मैतेई समुदाय को म्यांमार और आसपास के पड़ोसी राज्यों से आने वाले अवैध प्रवासियों से खतरा है।
- इसी के विरोध में ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला था. इसी एकता मार्च के दौरान हिंसा भड़क गई।