चर्चा में क्यों है राजा भैया और भानवी का तलाक?
राजा भैया उत्तर प्रदेश की एक चर्चित शख्यियत हैं और एक छोटी सी रियासत से संबंध भी रखते हैं। उनके द्वारा दिल्ली की एक अदालत में दायर की गयी तलाक की अर्जी आजकल चर्चा में है।
- Anil Singh
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में सियासी परिवारों के बीच तलाक की खबरें आजकल सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। राज्य के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह और उनकी पत्नी पूर्व मंत्री स्वाति सिंह के बीच तलाक होने की खबर अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि भदरी स्टेट के राजकुमार एवं आठ बार के विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया और उनकी पत्नी बस्ती घराने की राजकुमारी भानवी सिंह के बीच तलाक की खबर एक बार फिर सुर्खियां बन गई हैं।
राज परिवार से संबंध रखने वाले राजा भैया और भानवी की तलाक की खबरें बाहर आने के बाद से ही तरह तरह के कयास लगाये जाने लगे हैं। राजा भैया और भानवी की शादी 17 फरवरी 1995 को हुई थी। तब तक राजा भैया विधायक चुने जा चुके थे। दोनों को चार बच्चे हैं, जिनमें दो पुत्रियां तथा दो पुत्र हैं। बड़ी पुत्री राघवी का जन्म 1996, छोटी पुत्री विजय राजेश्वरी का जन्म 1997 तथा जुड़वा पुत्रों शिवराज एवं बृजराज का जन्म 2003 में हुआ है।
राजा भैया और भानवी पिछले दो-तीन सालों से अलग रह रहे थे। दोनों के बीच लंबे समय से बातचीत बंद थी, लेकिन यह खबर कभी बाहर नहीं आई। भानवी सिंह भदरी महल छोड़कर लंबे समय से दिल्ली में रह रही थीं। पहली बार दोनों के बीच अनबन की खबर तब सामने आई, जब भानवी ने राजा भैया के चचेरे भाई और प्रतापगढ़ से एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह पर ईओडब्ल्यू थाने में आईपीसी की कई धाराओं में मुकदमा दर्ज कर धोखाधड़ी करने का आरोप लगाया।
थाने में की गयी शिकायत में भनवी ने कहा कि वह 2007 में बनाई गई श्रीदा प्रापर्टी प्राईवेट लिमिटेड कंपनी की डाइरेक्टर और मेजारिटी शेयर होल्डर हैं। उनके देवर अक्षय प्रताप ने धोखाधड़ी करते हुए जाली डिजिटर हस्ताक्षर के जरिये उनके मेजारिटी शेयर अपने नाम कर लिए तथा खुद को और अपने करीबियों को डायरेक्टर नियुक्त कर दिया है। इस मामले में राजा भैया ने कहा था कि अक्षय प्रताप ने कुछ भी गलत नहीं किया है, वह इस मामले में अपने भाई के साथ खड़े हैं।
इसके बाद दोनों के बीच की तल्खी सबके सामने आई और अब मामला तलाक तक जा पहुंचा है। दरअसल, तलाक पति-पत्नी के बीच का बेहद निजी मामला है, लेकिन हमारा समाज अभी इतने खुले विचारों का नहीं हो पाया है कि पति और पत्नी के बीच हो रहे अलगाव को आसानी से स्वीकार कर ले। खासकर सनातन धर्म का मध्यम वर्ग। यूपी के पूर्वी अंचल में तो तलाक को बहुत असम्मान की नजरों से देखा जाता है, लिहाजा ऐसी खबरें सुर्खियां बन जाती हैं। खासकर जब तलाक लेने वाले जाने-माने लोग हों। दयाशंकर सिंह और स्वाति सिंह के बाद अब रघुराज प्रताप सिंह और भानवी सिंह भी इसी राह पर हैं, तब तलाक का मामला और राजा भैया दोनों चर्चा में है।
वैसे, पुरानी परंपराओं एवं सामाजिक मान्यताओं के इतर भारत में भी लिव इन रिलेशन और तलाक जैसे मामले तेजी से बढ़े हैं, लेकिन समाज में विवाह जैसी परंपरा की अब भी सर्वाधिक अहमियत है। लेकिन मनुष्य मानों प्रतिक्रमण कर रहा है। जहां से चला था वहीं लौटकर वापस जाना चाहता है। इसलिए गैर सामाजिक रिश्ते उसे अधिक आकर्षित कर रहे हैं।
पुर्तगाल जैसे यूरोपीय देशों में तो तलाक आम बात है। वहां विवाह के बिना बच्चे पैदा करना सामान्य घटना है। एक करोड़ आबादी वाले इस देश में दस में सात लोग तलाक लेकर दूसरी- तीसरी- चौथी शादी तक कर लेते हैं, जो यहां के खुले समाज के लिए आम बात है। इसके विपरीत भारत जैसे पारंपरिक देश जहां परंपरा, पारिवारिक रिश्तों की अहमियत एवं संस्कारों को सर्वोपरि माना जाता है, वहां तलाक जैसी घटनाएं लोगों के गले के नीचे नहीं उतर पाती हैं।
हमारे यहां वैवाहिक बंधन के शुरुआत के संबंध में महाभारत में एक कथा मिलती है। जिसमें बताया गया है कि उद्दालक ऋषि के पुत्र श्ववेतकेतु ऋषि अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी वहां एक अन्य ऋषि आये और उनकी माता को उठाकर अपने साथ ले गये। यह देखकर श्वेतकेतु ऋषि बहुत क्रोधित हुए। तब उनके पिता ने समझाया कि प्राचीन काल से यही नियम चला आ रहा है। संसार की सभी महिलाएं इसी नियम के अधीन हैं। हम इस नियम के विरुद्ध कुछ भी नहीं कर सकते हैं।
श्वेतकेतु ऋषि ने विरोध करते हुए कहा कि यह तो पाशविक प्रवृत्ति है। इस घटना के बाद उन्होंने विवाह का नियम बनाया, जिसमें यह स्थापित किया कि जो भी स्त्री विवाह बंधन में बंधने के बाद दूसरे पुरूष के पास जायेगी, उसे गर्भ हत्या करने जितना पाप लगेगा। जो पुरूष अपनी पत्नी को छोड़कर किसी दूसरी महिला के पास जायेगा, उसे भी इस पाप का परिणाम भोगना होगा। उन्होंने विवाह बंधन के बाद मिलकर गृहस्थी चलाने का नियम बनाया तथा स्त्री-पुरूष की मर्यादा भी तय की। इस में संबंध विच्छेद जैसी कोई परिकल्पना नहीं है।
बहरहाल, उत्तर प्रदेश के पूर्व राजघरानों में यह कोई नया मामला नहीं है। इसके पहले भी अमेठी राजघराने के संजय सिंह ने अपनी पत्नी गरिमा सिंह से तलाक लेकर अमिता मोदी से विवाह किया था, जो बैडमिंटन खिलाड़ी सैयद मोदी की पत्नी रह चुकी थीं। अगर सियासी तलाक की बात करें तो आगरा से एक बार विधायक और सपा सरकार में राज्यमंत्री रह चुके चौधरी बशीर ने गजाला लारी से तलाक लिया था, जो देवरिया के लार से विधायक रह चुके मुराद लाली की विधवा थीं।
एक सिरे से ऐसा लगता है कि विवाह करना और तलाक लेना ये व्यक्ति का निजी मामला है लेकिन राजा भैया जैसे लोग जब ये काम करते हैं तो यह सार्वजनिक चर्चा का विषय बन जाता है। कारण मूल में वही है कि भारतीय समाज तलाक को आज भी अच्छा नहीं मानता भले ही इसके कानूनी अधिकार हमें प्रदान कर दिये गये हों। निश्चय ही इस उम्र में आकर उनका अलग होना उनके बच्चों के लिए एक अभिशाप की तरह ही होगा।
(इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेख में प्रस्तुत किसी भी विचार एवं जानकारी के प्रति karnvani उत्तरदायी नहीं है।)