उजड़ गयी अतीक के अपराध की दुनिया, खत्म हुआ खौफ का साम्राज्य
जब कोई बहुत पाप करने लगता है तो उसके बारे में कहा जाता है कि जा तू अपने मरे बेटे का मुंह भी नहीं देख पायेगा। अतीक अहमद के ऊपर यह कहावत जस की तस लागू हो गयी है।
जिस अतीक अहमद ने अहमदाबाद से पिछली पेशी पर आने के बाद प्रयागराज में पत्रकारों के सवालों पर पूरी अकड़ में कहा था किस बात का डर, वही माफिया डॉन गुरुवार को बेहद गमगीन और सहमा हुआ नजर आया। कई परिवारों को उजाड़ देने वाले अतीक को अपने हत्यारे बेटे असद के एनकाउंटर की खबर सुनकर तकलीफ हो रही थी। उसे अपने किये कुकर्मों पर पछतावा हो रहा था। कई निर्दोषों का बेखौफ होकर खून बहाने वाले अतीक की आखों में आंसू थे। कई बच्चों को अनाथ करने वाला अतीक एक बाप के तौर पर खुद को असहाय और टूटा हुआ महसूस कर रहा था।
दर्जनों परिवारों को उजाड़ देने वाले और सैकड़ों लोगों को खून के आंसू रुलाने वाले माफिया अतीक अहमद को इस दर्द का एहसास और पछतावा उसके 44 साल के अपराधिक इतिहास में पहले क्यों नहीं हो पाया? किस ताकत के दम पर चार दशक तक खौफनाक घटनाओं को अंजाम देने के बाद भी अतीक किसी मामले में सजायाफ्ता नहीं हो सका था? किसकी शह पर अतीक को इतना भरोसा था कि उमेश पाल की हत्या के बाद उसने अपनी पत्नी को आश्वस्त किया था कि अपने बेटे असद को बचा लेगा?
शायद सियासी आकाओं पर उसे भरोसा रहा होगा। अतीत में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी सरकार में अतीक-असरफ ने राजू पाल की हत्या कराई और मुख्तार अंसारी ने कृष्णानंद राय की, लेकिन इन दोनों विधायकों की हत्या में शामिल शूटरों और माफियाओं का बाल भी बांका नहीं हुआ। उमेश पाल की हत्या के बाद भी अतीक अहमद को यही अहसास रहा होगा कि वह अपने सियासी कनेक्शन तथा मैनेजमेंट के बूते अपने बेटे और अन्य अपराधियों की टीम को बचा लेगा, नहीं तो उमेश की हत्या के बाद शाइस्ता से कभी नहीं कहता कि “आज अठारह साल बाद चैन की नींद सोया हूं। असद शेर का बच्चा है और शेरों वाला काम किया है, मैं सब मैनेज कर लूंगा।”
उत्तर प्रदेश में बहुतेरे अपराधी हैं। एक से बढ़कर एक खौफनाक भी। राज्य में अपराधी गुटों के बीच गैंगवार भी हुए, ठेकेदारी को लेकर सड़कों पर खून भी बहे, लेकिन किसी भी माफिया ने मौजूदा विधायकों की हत्या कराने का दुस्साहस नहीं दिखाया। लेकिन मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद ने मौजूदा विधायकों की ना केवल हत्या कराई बल्कि अपने सियासी मैनेजमेंट के बलबूते बच भी निकले। किसी भी शूटर का एनकाउंटर नहीं हुआ। चाहे सरकार सपा की हो या फिर बसपा की, दोनों सरकारों में अल्पसंख्यक माफियाओं का मैनजमेंट सिस्टम बखूबी चलता रहा।
इन दोनों के अपराध और सियासी संरक्षण ने पुलिस का मनोबल भी तोड़ा। इस सिस्टम की झलक आप सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती के ताजा ट्वीट में देख सकते हैं। यूपी के मुख्यमंत्री रह चुके दोनों नेताओं ने उमेश पाल की हत्या करने वाले असद और गुलाम के एनकाउंटर को झूठा करार दे दिया और जांच की मांग कर डाली। जब उमेश पाल और दो पुलिसकर्मियों की हत्या हुई थी तो दुख जताने की बजाय अखिलेश यादव ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा था कि सरकार यह ना कहे कि यूपी में शूटिंग को बढ़ावा दिया जा रहा है, लेकिन अतीक के बेटे और शूटर गुलाम का एनकाउंटर होते ही उनका दर्द छलक आया।
बीते तीन दशक में ऐसा पहली बार हुआ है कि राज्य के कुख्यात माफियाओं के परिवार का कोई सदस्य मारा गया है। कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए जिस तरीके से अपराधियों पर लगाम कसी थी, उसके बाद योगी आदित्यनाथ ही दूसरे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने माफियाओं को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति अपना रखी है। सूबे में योगी आदित्यनाथ की जगह दूसरा कोई मुख्यमंत्री होता तो शायद ही सोचा जा सकता था कि अतीक अहमद का अपराधी बेटा पुलिस मुठभेड़ में ढेर हो सकता है। अतीक ने उमेश पाल की हत्या कराकर योगी सरकार को जो चुनौती दी थी, उसका अंजाम उसे मिल चुका है।
खबर है कि अतीक ने सत्ताधारी दल के एक नेता से अपने पुत्र असद को बचाने के लिए मदद मांगी थी, लेकिन योगी के तेवर को देखते हुए उस नेता ने भी हाथ खड़े कर दिये थे। अतीक को कतई उम्मीद नहीं थी कि उसके पुत्र का एनकाउंटर भी हो सकता है। सपा नेता रामगोपाल यादव समेत कई नेताओं ने असद के एनकाउंटर की बात करते हुए योगी सरकार और पुलिस पर दबाव बनाने की नीति अपनायी थी, ओवैसी ने भी बयानबाजी की थी, लेकिन योगी सरकार किसी के दबाव में नहीं आई। परिणाम यह रहा कि अठारह साल बाद चैन की नींद सोने वाले अतीक की आंखों से लंबे समय के लिए नींद उड़ गयी है।
कभी सत्ता का दुलारा और पॉवरफुल रहा अतीक का आतंक ही खत्म नहीं हुआ है, उसका परिवार भी बर्बादी की कगार पर है। अरबों की संपत्ति जब्त हो चुकी है। पत्नी ईनामी अपराधी होकर फरारी काट रही है। बहन भी फरार है। पांच बेटों में एक एनकाउण्टर में मारा गया, दो बेटे जेल में हैं और दो बाल सुधार गृह में। खुद अतीक और असरफ सजायाफ्ता मुजरिम बनकर जेल में हैं। एनकाउंटर में मारे गये असद की लाश प्रयागराज में है, लेकिन उसके अपने परिवार का एक सदस्य कंधा देने की हैसियत में नहीं है। मजबूरी में नाना, मौसा को अंतिम संस्कार करना पड़ रहा है। माफिया और उसके राजनीतिक समर्थक दुखी हैं, लेकिन अपराधियों से नफरत करने वाला एक बड़ा वर्ग खुश है और सोशल मीडिया पर इसका इजहार भी कर रहा है।