किस्सा पंचायत चुनाव में कुर्सी का
अरविंद सिंह चौहान
लखनऊ (करण वाणी)। उत्तर प्रदेश में आरक्षण प्रक्रिया लागू होने के बाद ग्राम पंचायतों की बागडोर गांव के निम्न वर्गों के हाथ भले ही चली गई हो लेकिन फिर भी इसका संचालन बाहुबली आज भी कर रहे हैं। शासन की जो मनसा थी वह पूरी होती हुई दिखाई नहीं देती। फर्क इतना पढ़ा है सेहरा दूसरों के सिर रखकर उसकी कमान खुद बाहुबली संभाले हुए है। इसमें शासन प्रशासन भी दखल नहीं दे पाता क्योंकि इन दबंगों के तार कहीं ना कहीं से सभी राजनीतिक दलों से जुड़े हुए हैं और चाह कर भी कोई कुछ नहीं कर पा रहा है। इन हालातों में पद पर आसीन लोग बंधुआ मजदूर की तरह दबंगों के आगे पीछे नाचते रहते हैं और कुर्सी पर स्वयं बैठने की जगह पर अपने इन आकाओं को बैठाते हैं। वो खुद जमीन पर बैठते हैं जिससे पद और उनकी थू थू हो रही है। लेकिन डर का खौफ जो इनके जहन में समाया है वो कैसे निकले जब शासन प्रशासन की मशीनरी बाहुबलियों की गोद में है।
ढाई दशक पहले आरक्षण प्रक्रिया शुरू कर सबको समान हक और विभिन्न पदों पर सभी जातियों को आसीन होने का जो सपना शासन ने देखा था अभी तक पूरी तरीके से सही साबित नहीं हो पा रहा है और जनप्रतिनिधि दबंगों के हाथों की कठपुतली बने हुए हैं। बाहुबली के हाथों से मुक्त कराने का जो बीड़ा पूर्व में सरकार द्वारा उठाया गया था वो आज भी थोथा लग रहा है। तमाम जगहों पर अब भी दबंगों का सिक्का पूरी तरीके से चल रहा है। ग्राम पंचायत से लेकर जिला पंचायत स्तर तक पदों को आरक्षण में परिवर्तन करने का फामूर्ला सन 1995 में पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने शुरू किया था। जिसमें हर 5 वर्ष के बाद पदों का चयन आरक्षण आबादी के अनुसार होगा। ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य, ब्लॉक प्रमुख ,जिला पंचायत सदस्य, जिला पंचायत अध्यक्ष सहित आदि शामिल है।इन पदों का हर पंचवर्षीय में बदलाव हुआ करता है। बदलाव के चलते सीट छिन जाने का डर हो गया। बाहुबली खुद चुनाव लड़ नहीं सकते इसलिए अपने किसी खास या फिर मजदूर को चुनाव के मैदान में उतारकर जीत जाने के बाद फिर वही धाक जमा रखी है। दबंगई का आलम यह है असली प्रधान जिसे जनता ने चुना है वो वही मजदूरी कर रहा है।
दबंगों बाहुबलियों के घर का गोबर कर कर झाड़ू पोछा कर रहे हैं और दबंग सारा काम निपटा रहे हैं। असली प्रधान को ज्यादातर क्षेत्र व ब्लॉक व अन्य विभागों के अधिकारी कर्मचारी जानते ही नहीं हैं। नकली दबंग ही असली प्रधान की भूमिका निभा रहे इस बात का मलाल इन निम्न वर्गीय जाति के प्रधानों में है। लेकिन करे तो क्या करें जो दबंगों का प्रभाव इनके ऊपर होता है।स्थिति यह है कि इनके हस्ताक्षर स्वयं बनाकर सब कामों को निपटाया जाता है और उनकी यह हिम्मत नहीं है कि दबंगों द्वारा की जा रही हिमाकत का विरोध कर सकें।अगर देखा जाए तो शासन का यह फामूर्ला बाहुबलियों के आगे नपुंसक बना हुआ है। क्योंकि गरीब जनप्रतिनिधि भी बन रहे हैं दबंगों के रहमों करम पर और वो इसका इस्तेमाल एक रखेल की तरह कर रहे हैं।कभी किसी ने विरोध किया तो उसका नतीजा उसे बुरा भुगतना पड़ा उसका उत्पीड़न विभिन्न तरीकों से किया गया। या फिर उसका जड़ से सफाया हो गया।इस दशा में तो यही कहा जा सकता है इस आरक्षण प्रक्रिया का कोई मतलब नहीं है।जहां पर दबंगों के सामने अपंग साबित हो कानून। एक तो पद की छीछालेदर दूसरे कूड़ा करकट गोबर धो रहे प्रधानों को खुद जनता के सामने शर्मसार होना पड़ रहा है वहीं सम्मानित पद की भी फजीहत हो रही है जिसकी तस्वीर किसी से छिपी नहीं है।दबंगों के आगे शासन के आदेश धारा शाही यह कहा जाए और शासन प्रशासन बेबस हो गया है इनके आगे सब सही है।क्योंकि जो हो रहा है उस से सभी वाकिफ हैं फिर भी चुप हैं इससे तो यही लगता है आरक्षण का नाटक कर अराजकता को बढ़ावा दिया गया। क्योंकि इससे फैली गांवों में बैमनुष्यता हत्या जैसी तमाम घटनाओं को जन्म दे चुकी हैं।क्षेत्र पंचायत सदस्य की बात की जाए तो इसमें ज्यादा रुचि कोई इसलिए नहीं रखता क्योंकि ब्लॉक प्रमुख एवं विधान परिषद सदस्य का चुनाव होने के बाद कोई बाद में इन्हें पूछता नहीं है। फिर भी इसमें भी बीच के लोग खेल कर जाते हैं। प्रमुख पद विधान परिषद सदस्य चुनाव के समय मिलने वाला धन भी बिचौलिये डकार जाते हैं।
इसी तरह ब्लॉक प्रमुख जिला पंचायत सदस्य अध्यक्ष तक में बाहुबलियों की हनक चल रही है और वो पद पर होने के बाद भी असहाय से हैं। लोगों की माने तो इस आरक्षण प्रक्रिया से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। इसका कारण है जब कमान उन्हीं के हाथों में है जिन से निजात दिलाने के लिए कदम उठाया गया था। जब उससे स्वतंत्रता नहीं मिली और मिल रहा है तो वह है जनता का विरोध और गालियां तो इसका क्या मतलब। कहने का तात्पर्य है कि आरक्षण प्रक्रिया का मतलब था कि गरीब तबके के लोग भी ग्राम प्रधान जिला पंचायत सदस्य ब्लाक प्रमुख क्षेत्र पंचायत सदस्य जिला पंचायत सदस्य जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर आसीन हो सके। आरक्षण प्रक्रिया लागू होने के बाद चुनाव लड़ने का मौका गरीबों को मिल गया लेकिन कुर्सी पर बैठने का मौका आज भी नहीं मिला हालात पहले जैसे हैं। हुकूमत गांव से लेकर जिला पंचायत तक आज भी ज्यादातर दबंग बाहुबलियों अपराधियों के हाथ में ही है और वही कुर्सी पर बैठकर पूरी तरीके से अपनी मनमानी करके संचालन कर रहे हैं।