राजनीति

जानिए कौन हैं राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू; भाजपा को उनके नाम से क्या होगा फायदा

नई दिल्ली. ओडिशा में सिंचाई और बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक से लेकर भाजपा के नेतृत्व वाले राजग की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार नामित होने तक का सफर आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू के लिए बेहद लंबा और मुश्किल सफर रहा है. निर्वाचित होने पर मुर्मू आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली भारत की पहली राष्ट्रपति होंगी. झारखंड की पूर्व राज्यपाल और आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मू आगामी राष्ट्रपति चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की उम्मीदवार होंगी. भाजपा की सर्वोच्च नीति निर्धारक संस्था, संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद मंगलवार को पार्टी अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने उनकी उम्मीदवारी की घोषणा की।
संथाल समुदाय में जन्मीं मुर्मू ने 1997 में रायरंगपुर नगर पंचायत में एक पार्षद के रूप में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और वह वर्ष 2000 में ओडिशा सरकार में मंत्री बनीं. बाद में उन्होंने 2015 में झारखंड के राज्यपाल पद की जिम्मेदारी भी संभाली. रायरंगपुर से दो बार विधायक रहीं मुर्मू ने 2009 में तब भी अपनी विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया था, जब बीजद ने राज्य के चुनावों से कुछ हफ्ते पहले भाजपा से नाता तोड़ लिया था, जिसमें मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजद ने जीत दर्ज की थी. बीस जून 1958 को जन्मीं मुर्मू झारखंड की पहली महिला राज्यपाल बनने का गौरव भी रखती हैं।
बेहद पिछड़े और दूरदराज के जिले से ताल्लुक रखने वालीं मुर्मू ने गरीबी और अन्य समस्याओं से जुझते हुए भुवनेश्वर के रमादेवी महिला कॉलेज से कला में स्नातक किया और ओडिशा सरकार के सिंचाई और बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में अपना करियर शुरू किया था. मुर्मू को 2007 में ओडिशा विधानसभा द्वारा वर्ष के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उनके पास ओडिशा सरकार में परिवहन, वाणिज्य, मत्स्य पालन और पशुपालन जैसे मंत्रालयों को संभालने का अनुभव है।
प्रशासनिक तौर पर भी काफी कुशल है द्रोपदी मुर्मू  
मुर्मू आदिवासी मामलों, शिक्षा, कानून व्यवस्था और झारखंड के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों से हमेशा अवगत रही है कई मौकों पर, उन्होंने राज्य सरकारों के फैसलों पर सवाल उठाया, लेकिन हमेशा संवैधानिक गरिमा और शालीनता के साथ. विश्वविद्यालयों के पदेन कुलाधिपति के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान राज्य के कई विश्वविद्यालयों में कुलपति और प्रति-कुलपति के रिक्त पदों पर नियुक्ति हुई थी. उन्होंने खुद राज्य में उच्च शिक्षा से संबंधित मुद्दों पर लोक अदालतों का आयोजन किया, जिसमें विश्वविद्यालय के शिक्षकों और कर्मचारियों के लगभग 5,000 मामलों का निपटारा किया गया।
शिक्षक और सहायक के रूप में कर चुकी हैं काम 
20 जून, 1958 को ओडिशा में एक साधारण संथाल आदिवासी परिवार में जन्मी मुर्मू ने 1997 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी. वह पहली बार 1997 में रायरंगपुर में जिला बोर्ड की पार्षद चुनी गईं थीं. सियासत में आने से पहले, मुर्मू ने अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च सेंटर में मानद सहायक शिक्षक के रूप में काम किया था. इससे पहले वह सिंचाई विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के रूप में भी काम कर चुकी थीं. वह ओडिशा में दो बार विधायक रही हैं और उन्हें नवीन पटनायक सरकार में मंत्री के रूप में काम करने का मौका मिला, जब भाजपा बीजू जनता दल के साथ गठबंधन में थी. मुर्मू को ओडिशा विधान सभा द्वारा सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था.
भाजपा देना चाह रही है ये संदेश 
उनकी उम्मीदवारी से भाजपा कई तरह से पूरे देश को सांकेतिक संदेश देने की कोशिश कर रही है. शीर्ष पद के लिए उनका चयन भी आदिवासी समाज में पैठ बनाने की भाजपा की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जो अब तक कांग्रेस का गढ़ रहा है. भाजपा आगामी राज्य विधानसभा चुनावों पर नजर गड़ाए हुए है, और गुजरात, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासी इसका मुख्य फोकस क्षेत्र हैं, जहां उनके वोट पार्टी की योजना के लिए महत्वपूर्ण हैं।
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