उत्तर प्रदेश

चौथे स्तंभ पर चला सरकारी हंटर, यूपी विधानसभा के सेंट्रल हॉल में पत्रकारों का प्रवेश बंद

उत्तर प्रदेश विधानसभा में जिस सेंट्रल हॉल से पत्रकार दशकों तक सदन की कार्यवाही की कवरेज करते आए हैं, उन्हें अब वहां प्रवेश नहीं मिलेगा।

  • पंकज सिंह चौहान

लखनऊ। भारतीय लोकतंत्र का चौथा स्तंभ मीडिया लोगों के विचारों को प्रभावित करने या परिवर्तित करने में अहम भूमिका निभाता है।इसकी भूमिका के अंतर्गत केवल राष्ट्र के समक्ष उपस्थित समस्याओं का समाधान खोजना शामिल है, बल्कि लोगों को शिक्षित तथा सूचित भी करना है ताकि लोगों में समालोचनात्मक जागरूकता को बढ़ावा दिया जा सके। परंतु विगत समय में ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं, जहां सरकारों या फिर सरकारी अफ़सरों द्वारा पत्रकारों के हितों और उनके अधिकारों पर लगातार हमले किए जा रहे हैं।

ताज़ा मामला उत्तर प्रदेश की विधानसभा का हैं, विधानसभा के सेंट्रल हॉल एवं कैंटीन में पत्रकारों का प्रवेश बंद कर दिया गया है, पत्रकारों को विधानसभा के प्रवेश करने से रोकने के फैसले से पत्रकारों के बीच काफी नाराजगी है,  पत्रकारों ने इसे अलोकतांत्रिक और अपमानजनकबताया है।

वित्त मंत्री सुरेश कुमार खन्ना सोमवार 5 फरवरी को राज्य का बजट पेश कर रहे थे, तभी पत्रकारों को पता चला कि जिस सेंट्रल हॉल में उन्होंने बैठकर दशकों तक सदन की कार्यवाही की कवरेज की अब उन्हें वहाँ प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

सेंट्रल हाल का प्रयोग विपक्षी दलों के विरोध प्रदर्शन करने, मीडिया से बातचीत करने और पत्रकारों के सवालों का जवाब देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, और कई बार सत्ताधारी दल के नेता भी इसी हॉल में मीडिया से मुखातिब होते हैं। पत्रकारों के अनुसार, इस कदम से विधानसभा को पहले की तरह व्यापक रूप से कवर करना मुश्किल हो गया है क्योंकि मंत्री और विधायक अब बातचीत के लिए उपलब्ध नहीं होंगे।

नेशनल यूनियन ऑफ़ जर्नलिस्ट (यूपी) ने जताया एतराज़

उत्तर प्रदेश सरकार के बजट सत्र के दौरान विधानसभा के सेन्ट्रल हॉल एवं जलपान गृह में पत्रकारों के प्रवेश को प्रतिबंधित किए जाने के मामले पर एनयूजे, उत्तर प्रदेश ने सख्त ऐतराज जताया है। संगठन के प्रदेश अध्यक्ष ने विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना को पत्र लिखकर तत्काल सख्त एवं आवश्यक कार्रवाई किए जाने की मांग उठाई है।

संगठन ने विधानसभा प्रशासन के इस निर्णय पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराते हुए इसे संसदीय परंपराओं के विपरीत और पत्रकारों के लिए बेहद अपमानजनक करार दिया है। इस संबंध में मंगलवार को हुई बैठक में वरिष्ठ पत्रकारों ने चिंता व्यक्त करते हुए इस निर्णय को संसदीय परंपराओं का उल्लंघन बताया।

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